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Tuesday, January 23, 2018

तेज पिचों पर कब सुघरेगा भारत का प्रदर्शन?



महेंद्र सिंह धोनी द्रारा टेस्ट कप्तानी छोड़ने के बाद विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने  साउथ अफ्रीका दौरे से पहले 32 टेस्ट मैच खेले हैं। इनमें से 20 जीते और सिर्फ 3 हारे, आंकड़े बेमिसाल हैं, लेकिन इनमें से एक भी मैच साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की तेज पिचों पर नही खेला गया हैं। बेशक भारतीय टीम ने लगातार 9 टेस्ट सीरीज जीत रखीं हो लेकिन इनमें से ज्यादातर सीरीज भारत में खेली गयी हैं, जो सीरीज विदेश में खेली गयी हैं वो वेस्ट इंडीज और श्रीलंका के साथ खेली गयीं हैं। अग्नि परीक्षा घर के बाहर होनी थी और साल की पहली परीक्षा में टीम फेल हो गयी है। साल 2018 में भारत को इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के दौरे भी करने हैं, लेकिन टीम अभी तक विदेश में खेलने के लिये सक्षम नही है। अगले बर्ष वर्ल्ड कप भी इंग्लैंड में होना है, लिहाजा मुश्किलें सामनें लाइन लगाकर खड़ी है और इनसे निबटने की कोई तैयार नही हुर्इ है।

विदेशी घरती पर क्या होगा, ये तो बड़ा सवाल है। विदेशी दौरों की बात करें तो इतिहास उठा कर देख लिजिये, 1932 से अबतक विदेशी घरती पर भारतीय टीम का रिकार्ड बेहद खराब रहा है। सौरव गांगुली की कप्तानी में टीम ने विदेशी दौरो पर जीतना शुरू कर दिया था। विदेशी मैदानों में भारत का वनडे और टी20 में प्रदर्शन काफी सुघरा भी है, लेकिन टेस्ट में हालात जैसे के तैसे बने हुये हैं। मौजूदा टीम इंडिया का पेस अटैक और बल्लेबाजी क्रम दुनिया में बेहतर माना जा रहा है। इसकी गवाही आर्इसीसी रैंकिग देती है, लेकिन टीम के दिग्गज बल्लेबाज सिर्फ घरेलु घरती पर ही दहाड़ लगाते दिखते है। घर के बाहर जाकर इनकी बोलती बंद हो जाती है। हालांकि भारतीय टीम श्रीलंका और वेस्टइंडीज जैसी टीमों को तो उनके ही घर में घूल चटा देती है लेकिन जब इनका सामना साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया की तेज पिचों पर होता है तो इनकी हालत पतली हो जाती है। अंकड़ो पर नज़र डालें तो विदेशी जमीं पर 254 टेस्ट खेलें हैं। इनमें 106 मैचों में भारत हारा है जबकि 45 ही जीता है। 45 में भी ज्यादातर एशिया में ही जीते हैं। मौजूदा दौरे की बात करें तो सवाल घूम फेरकर वंही आकर रुक जाता है कि कमी कंहा पर है, मौजूदा समय में टीम में बेहतरीन बल्लेबाज हैं, गेंदबाज भी शानदार हैं। मुख्य कोच सहित, गेदबाजी, बल्लेबाजी और फील्डिग कोच हैं, अनुभव की भी कोर्इ कमी नही क्योंकि मौजूदा टीम के ज्यादातर खिलाड़ी अफ्रीका में खेल ही चुके हैं। फिर क्यों इस टीम के खिलाड़ी घर में चमत्कारिक प्रदर्शन करते हैं, और विदेश में ये खिलाड़ी नौसिखिये से लगते है।

अब इसमें कोर्इ शक नही कि टेस्ट के तौर पर भारत के पास पुजारा, मुरली विजय, लोकेश राहुल, रहाणें और कोहली जैसे बल्लेबाज हैं, लेकिन यह कहना गलत नही होगा कि ये बल्लेबाज विदेशी तेज पिचों पर खेलने में सक्षम नही हैं। आन बाले समय में वर्ल्ड कप सहित कर्इ विदेशी दौरे हैं। इनमें भारत को कामयाबी हासिल करनी है तो कुछ अहम वदलाव बेहद जरूरी हैं। इसके लिये भारतीय क्रिकेट बोर्ड को अपने देश में ही तेज पिचें बनाने की जरूरत है ताकि दौरों पर जाने से पहले वंहा अभ्यास किया जा सके। इसके अलावा भारत में आर्इपाएल होता है इसी के तर्ज पर दुनिया भर मे प्रतियेगिताएं होती हैं, विदेशी खिलाड़ियों को आर्इपाएल में खेलने की अनुमति होती है लेकिन बीसीसीआर्इ के द्रारा भारत के खिलाड़ियो की विदेशी लीग में खेलने की अनुमति नही है। क्रिकेट पंड़तों की मानें तो बीसीसीआर्इ को नर्इ नीती बनाने की जरूरत है जिसमें भारत के खिलाड़ियो की भी विदेशी लीग में खेलने की अनुमति हो। इससे खिलाड़ियो को विदेशी पिचों का अनुभव हो सके।

कहना गलत नही होगा कि थोड़ा सुघार और हो जाये, नर्इ नितियों को लागू किया जाये, घरेलु मैदानों के बजाये विदेशी दौरों पर ज्यादा खेला जाये, तो निश्चित तौर पर भारत की टीम दुनिया की सर्वश्रेष्ट टीम बन जायेगी। रैंकिग में तो नंबर एक हैं लेकिन चैंपियन टीम हर धरती पर चैंपियन होनी चाहिये। घर में तो सब शेर होते हैं।    

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